बिजली व्यवस्था पर फिर गिरी गाज: आंधी में पेड़ गिरने से आधा दर्जन विद्युत पोल टूटे, कई गांवों में पसरा अंधेरा, लापरवाही बनी मुसीबत की जड़

रानीगंज/ (प्रतापगढ़), गुरुवार की शाम करीब 6 बजे अचानक बदले मौसम ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया। रानीगंज-देहलूपुर मार्ग पर स्थित रामगढ़ गांव के पास तेज आंधी के दौरान एक विशाल पेड़ सड़क पर जा गिरा। इस दौरान पेड़ की चपेट में आकर 11 हजार वोल्ट की हाईटेंशन लाइन के करीब आधा दर्जन विद्युत पोल चूर-चूर हो गए, जिससे पूरे इलाके में हड़कंप मच गया।

इस हादसे के कारण रामनगर व लच्छीपुर फीडर से जुड़े कई गांवों की बिजली व्यवस्था पूरी तरह ठप हो गई है, जिससे हजारों की आबादी रात भर अंधेरे में रहने को मजबूर हो गई। लोग गर्मी, पानी और संचार व्यवस्था के ठप होने से परेशान हैं। गांवों में इन्वर्टर दम तोड़ चुके हैं और हैंडपंपों से पानी निकालना भी मुहाल हो गया है।

जिम्मेदारों की लापरवाही बनी लोगों की परेशानी का कारण

हैरानी की बात यह है कि यह पहला मौका नहीं है जब ऐसी घटना घटी हो। आंधी-पानी के मौसम में पेड़ों के गिरने और तारों से टकराकर बिजली व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं आम हो चली हैं। सरकार हर साल विद्युत विभाग को पेड़ों की छंटाई के लिए करोड़ों रुपये का बजट देती है, ताकि तारों के आसपास मौजूद पेड़ समय रहते काट दिए जाएं। मगर ज़मीनी हकीकत यह है कि न तो समय पर छंटाई होती है और न ही लाइनें दुरुस्त की जाती हैं।

विद्युत विभाग की लापरवाही और मनमानी रवैया आज एक बार फिर उजागर हो गया, जब दुर्घटना के कई घंटे बीत जाने के बावजूद मरम्मत कार्य शुरू नहीं किया गया। हालांकि मार्ग से पेड़ हटा दिया गया है, मगर पोल बदलने और विद्युत आपूर्ति बहाल करने का कार्य शुक्रवार तक टाल दिया गया है। एक्सियन ने स्पष्ट किया कि कुल पांच पोल क्षतिग्रस्त हुए हैं, और पूरे दिन का कार्य लगेगा, तब जाकर बिजली बहाल हो सकेगी।

ग्रामीणों में आक्रोश, प्रशासन से जवाबदेही की मांग

ग्रामीणों का कहना है कि बार-बार की बिजली बाधित होने की घटनाओं से अब उनका सब्र टूटने लगा है। “जब सरकार पेड़ों की छंटाई के लिए बजट देती है तो फिर हर बार हादसे का इंतजार क्यों किया जाता है?” — एक ग्रामीण ने गुस्से में कहा।

बिजली विभाग की यह लापरवाही न केवल प्रशासनिक उदासीनता को उजागर करती है, बल्कि सरकार की योजनाओं को भी पलीता लगाने जैसा है।

यदि समय रहते लाइन के किनारे लगे पेड़ों की छंटाई कर दी गई होती और पोलों की स्थिति की समय-समय पर जांच होती, तो यह हादसा टाला जा सकता था। अब जब पोल टूट गए हैं, तब विभाग सक्रिय हो रहा है, लेकिन तब तक कई गांवों के लोग पूरी रात अंधेरे में गुजारने को मजबूर हैं।

(रिपोर्ट: रुस्तम अली, विशेष संवाददाता)

Facebook Comments