प्रतापगढ़। कोरोना वायरस से दुनिया के बेशतर मुल्क त्रस्त हैं, और कोरोना वायरस का ख़तरा बहुत बड़ा ख़तरा है।
कोरोना वायरस को लेकर हमारे मुल्क हिन्दुस्तान में लाॅकडाउन किया गया है, और भीड़ से सख़्ती से मना किया गया है, ऐसे में चाहिए कि हम ऐसी रणनीति अपनाएं जिस से क़ानून का पालन और स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइड लाइन पर अमल हो और मस्जिदें भी आबाद रहें ।
” इस्लाम में नमाज़ की बड़ी अहमियत है ख़ास कर जुमा की नमाज़ जो बड़ी जमात के साथ अदा की जाती हैं, और अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया: जिसने तीन बार जुमा की नमाज़ बिना किसी मजबूरी के और बिना किसी बीमारी के छोड़ दी तो अल्लाह उसके दिल पर मुहर लगा देता है (यानी नेकी की तोफीक़ छीन लेता है) “इस से जुमा की नमाज़ की अहमियत का अन्दाज़ा किया जा सकता है।
लेकिन इसी हदीस (मुहम्मद ﷺ की इसी बात) में यह वजाहत भी मौजूद है कि किसी मजबूरी या बीमारी की वजह से जुमा की नमाज़ ना अदा कर सके तो इस वईद में शामिल नहीं है,
इस वक़्त कोरोना की वजह एक जगह इकठ्ठा होने पर बड़े नुक़सान का ख़तरा है, और माहिरीन की राय के मुताबिक़ जुमा के लिए जमा होना बेहद नुक़सान दह साबित हो सकता है, और इस्लाम में अपने आप को और दूसरों को नुक़सान से बचाना वाजिब (ज़रूरी) है।
इस लिए बेहतर यह है कि लोग अपने अपने घरों में ज़ोहर की नमाज़ पढें और चन्द लोग मस्जिद में जुमा पढ़ लें।
इन्सानी ज़िन्दगी की हिफाज़त करें, जज़्बात में ना बह कर शरीयत पर अमल करते हुए अक़्ल से काम लें, इस्लाम दीन ए रहमत है, जो लोगों के लिए आसानी पैदा करता है ना कि सख़्ती।