मेरे हमवतन भाइयों आस्थाओं के भगवानराम के मन्दिर की तुम्हें मुबारकबाद..

है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़
अहले नज़र समझते हैं उनको इमाम-ए-हिन्द.!
~इक़बाल
कल दुनियाँ के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश हिन्दुस्तान के प्रधान मंत्री के हाथों राम मन्दिर के भूमि-पूजन के बाद भारत में एक नये युग की शुरुआत हुई है.!

ये नया युग हिन्दुस्तान जैसे लोकतांत्रिक देश को किस दिशा में लेके जायेगा ये आने वाला वक़्त तय करेगा। एक ओर जहाँ इस देश के बहुसंख्यक समाज में उत्साह और खुशी है वहीं अल्पसंख्यक समाज ख़ासकर देश के मुसलमानों में मायूसी है। मायूसी इसलिये क्योंकि कल सेक्युलरिज़्म का चोला ओढ़ने वाले कई चेहरे अयाँ हुये और देश के मुसलमानों का भ्रम भी टूटा! राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के मुखिया भी ‘राम मयी’ रंग में बहते नज़र आये !


‘जय श्री राम’ जो कभी श्रद्धा और आस्था का लफ्ज़ हुआ करता था कल सबकी ज़बान पर वोट बैंक बनकर तैरता नज़र आया, मुसलमानों की हितैसी होने का दम भरने वाली पार्टियों के मुखिया भी कल बहुसंख्यकों के वोट खिसकने के डर से सुर में सुर मिलाते नज़र आये, राजनीतिक पार्टियों को तो छोड़िये देश का ज़्यादातर बुद्धजीवी तबक़ा, फ़िल्म इंडस्ट्री के कलाकार, मंचों पर सेक्युलरिज़्म का राग अलापने वाले देश के कवि शायर और देश की कवियित्रियाँ भी कल ‘जय श्री राम’ के नारे लगाती नज़र आयीं.!

ये जानते हुए भी कि BJP और RSS ने अपनी ताक़त का फ़ायदा उठाते हुए कोर्ट का फ़ैसला अपने हक़ में करवाया सबने ख़ासकर मुसलमानों ने भी उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले का सम्मान किया, जबकि फ़ैसले में न्यायालय ने साफ़ किया कि ऐसा कोई पुरातात्विक
सा साक्छ नहीं मिले जिससे ये ज़ाहिर हो कि मन्दिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गयी थी, न्यायालय ने अपने फ़ैसले में मस्जिद को तोड़ना भी क़ानूनन गलत और आपराधिक ठहराया, फ़िर भी आस्था के नाम पर ज़मीन मन्दिर के पक्ष में देने का फ़ैसला किया.!

अब सवाल ये उठता है क्या मन्दिर के निर्माण के बाद देश से नफ़रतों की सौदागरी ख़त्म होगी या फ़िर कोई नया मुद्दा खड़ा कर देश को फ़िर नफ़रतों के एक और समंदर में गोता लगाने के लिये छोड़ दिया जायेगा.!

सबसे बड़ा नुक़सान इसमें अल्पसंख्यक समुदाय ख़ासकर मुसलमानों का हुआ.! सभी राजनीतिक पार्टियों ने बारी बारी उन्हें वोट बैंक समझकर उनका खून चूसा और आज अकेला छोड़ दिया, बात यहीं तक होती तब भी ठीक होता, मन्दिर-मस्जिद की इस कटुता और RSS-BJP की राजनीतिक विचारधारा ने मुसलमानों को बहुसंख्यक समाज की निगाहों में अछूत बनाकर छोड़ दिया, नतीजा ये हुआ के देश के मुसलमानों से अधिकतम बहुसंख्यक समाज आज नफ़रत करने लग गया है.!

अब ये मुसलमानों को तय करना होगा कि वो ख़ुद को किस रास्ते पर ले जायेंगे, इन नाम निहाद राजनीतिक पार्टियों का वोट बैंक बनकर उनका झण्डा अभी भी उठायेंगे या अपने राजनीतिक रास्ते ख़ुद तैयार करेंगे..!
हाँ ये डर ज़रूर है कि अगर मुसलमानों ने अपनी सियासी हिस्सेदारी नहीं बढ़ाई और अपना रास्ता ख़ुद तैयार नहीं किया तो होसकता है उनकी आने वाली नस्लों को अपने ही मुल्क में अपनी क़ब्रों के लिये दो ग़ज़ ज़मीन के लिये भी तरसना पड़े.!

#शहज़ादा_कलीम
(बैनुल अक़्वामी शायर)

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