जब भारत की 80% आबादी गाँव से शहर की तरफ रवाना हो गई तो बोलो 72 सालों में तरक़्क़ी भारत की कहाँ हुई !
कुछ शहरों को पॉस बना दिया गया कुछ को स्लम लेकिन गाँव जहां कल थे वहीं आज भी हैं कोई भी सरकार आये जाए कोई फर्क नहीं पड़ा आज भी पीने को पानी नही कायदे से बिजली नहीं जहां है भी 10 से 12 घंटे मिलती है सड़क के नाम पर मिट्टी का ढेर जब 80% वोटर गाँव में बसते हैं तो गाँव का विकास किउ नहीं हो पाया ज़्यादातर गाँव में एजुकेशन 10 से 15 प्रतिशत भी नही है आज भी बाल मजदूरी करने पर बच्चे मजबूर है सरकारें और नेता हवाई जहाज से सफर करते हुए हमें भारत की तस्वीर बताते है और हम उसको बखूबी मान भी लेते है !
मुम्बई, दिल्ली , कलकत्ता और चेन्नई जैसे शहरों में हमको मजदूरी करते यही गाँव के मजदूर किसान मिलेंगे गरीबी का आलम ये है कि आज भी चाय का प्याला (मिट्टी का बर्तन) चाट कर लोग अपना पेट भरते हुए मिल जाएंगे !

आज़ादी के बाद क्या बदलाव हुआ?

जो गरीब था आज भी गरीब है जो अमीर था आज भी अमीर है आज भी 18 साल का बेटा जब होता है तो मां बाप को फिक्र होती है मेरा बेटा क्या करेगा और बेटे को अपने परिवार को चलाने के लिए घर से दूर कमाने के लिए जाना पड़ता है उस मां का दर्द वही मां समझ सकती है जब उसका बेटा उससे दूर जाता है एक बेटा अपने परिवार को चलाने के लिए पूरी जवानी कुर्बान कर देता है उसकी बीबी पूरी उम्र इसी इंतेज़ार में बूढ़ी हो जाती है कि कब अपने पति के साथ वक्त गुजरेगी बच्चे बाप का प्यार पाने के लिए पूरी उम्र कमाने में गुजार देता है ये अमीर क्या समझेंगे उस तड़प को जो ऑफिस से आने के बाद अपनी बीबी के बाहों में बांहें डाले शापिंग करते हुए पाये जाते हैं !!

कब वो वक्त आएगा जब सारे रिस्ते एक साथ एक घर में रहेंगे कब सरकारें इस 80% जनता का दर्द जान पाएंगी कब वो वक्त आएगा जब माँ बाप अपने बेटे से पत्नी अपने पति से बच्चे अपने बाप से करीब रहेंगे !
सरकारे कब गरीब किसान के बारे में सोचेंगी कब हमें विदेश और देश के दूसरे शहरों में पैसा कमाने के लिए नही जाना पड़ेगा कब हमें अपने नजदीकी शहर में इतने पैसे कमनो को मिल जाएंगे कि हम अपना परिवार चला सके !
देश का सबसे बड़ा मुद्दा ये है लेकिन ना कोई बोलने को तैयार है ना कोई सोचने को !

– जावेद खान प्रतापगढ़

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