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शब-ए-बारात का महत्व इस्लामिक धर्म के मुताबिक, इस रात को सच्चे दिल से अगर इबादत की जाए और गुनाहों से तौबा की जाए तो अल्लाह इंसान को हर गुनाह से पाक कर देता है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के पुरुष मस्जिदों में इबादत करते हैं। इस दिन कब्रिस्तान जाकर अपने से दूर हो चुके लोगों की कब्रों पर फातिहा पढ़कर उनकी मगफिरत के लिए दुआ की जाती है। इस दिन मुसलमान औरतें घरों में नमाज पढ़कर अल्लाह से दुआएं मांगती हैं और अपने गुनाहों से तौबा करती हैं। हालांकि, इस बार लॉकडाउन के चलते पुरुषों को भी मस्जिदों और कब्रिस्तान में जाने की इजाजत नहीं होगी। इसलिए इस बार पुरुष भी घरों में रहकर नमाज पढ़ेंगे।
ये है गुनाहों से तौबा की रात: बताया जाता है कि ये रात बड़ी अजमत और बरकत वाली होती है। इस रात में अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगी जाती है। इस दिन मुस्लिम घरों में तमाम तरह के पकवान जैसे हलवा, बिरयानी, कोरमा आदि बनाया जाता है। इबादत के बाद इसे गरीबों में भी बांटा जाता है। शब-ए-बारात की रात को इस्लाम की सबसे अहम रातों में शुमार किया जाता है क्योंकि इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, इंसान की मौत और जिंदगी का फैसला इसी रात को किया जाता है। इसलिए इसे फैसले की रात भी कहा जाता है।
शब-ए-बारात पर घर से ही करें इबादत कोरोना वायरस के चलते मुस्लिम धर्मगुरुओं और बुद्धजीवियों ने अपील की है कि देश में फैले कोरोना संक्रमण के मद्देनजर लोग शब-ए-बारात के मौके पर कब्रिस्तान, दरगाह अथवा मजारों पर जाने से बचें और घर पर ही इबादत करें।
रोजा रखने की फजीलत शब-ए-बारात के अगले दिन रोजा रखा जाता है। इसे लेकर मान्यता है कि रोजा रखने से इंसान के पिछली शब-ए-बारात से लेकर इस शब-ए-बारात तक के सभी गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। हालांकि इस दिन रोजा रखना जरूरी नहीं होता है।