सरकार और स्वास्थ्य महकमा मौत का आंकड़ा छिपा रहा है। सिर्फ कोरोना के इलाज हेतु बने एल-1 एल-2 व एल-3 में भर्ती मरीज की मृत्यु होने पर उसे सरकारी आकड़ें में लिया जा रहा है। वही आंकड़ा मीडिया के जरिये जनमानस को बताया जा रहा है।

जबकि सच्चाई यह है कि जिला अस्पतालों से इस आकड़ें के 10गुना मरीज मर रहे हैं। कितने मरीज तो जिला अस्पताल आते हैं और डॉक्टर उन्हें मृत घोषित कर देता है। उनका कोई लेखा जोखा ही नहीं होता। सरकार और स्वास्थ्य महकमा उस आकड़ें को लेना भी नहीं चाहती। उस आकड़ें को शामिल कर अपनी भद्द कौन कराये ? इससे अच्छा है कि कम आकड़ें दिखाकर वाहवाही बटोरकर अपने हाथों से अपनी पीठ थपथपाने में कोई हर्ज नहीं है।

जितने मरीज कोविड अस्पताल में मृत हो रहे हैं,उसके 30 गुना मरीज अपने घरों पर दम तोड़ रहे हैं। सरकार के पास इसका भी कोई रिकार्ड नहीं है। सच्चाई बहुत कड़वी होती है। जिसे हर कोई सुन नहीं सकता। सिस्टम में बैठे हुक्मरानों के कानों में तो जूं तक नहीं रेंग रही है। वह धृतराष्ट्र बन चुके हैं। उन्हें गाँधी जी के तीन बंदर कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी। सरकार और स्वास्थ्य विभाग में बैठे जिम्मेदारों की दशा वैसी हो चुकी है।

देश का सिस्टम फेंक आकड़ों पर ही संचालित है। देश में न मृत्युदर सही है और न जन्मदर। इलाज के दौरान कितने मरीज मरते हैं इसका कोई लेखाजोखा नहीं है। कोरोना संक्रमण काल में घर पर होम आइसोलेशन में रहने वाले और प्राइवेट अस्पतालों में कितनी मौतें हो रही हैं ? इसका अनुमान कोई नहीं लगा सकता। सरकार और स्वास्थ्य महकमा इलाज के साथ-साथ झूठ बोलने का भी ठेका ले रखा है।

राजदार….!!

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