गोरखपुर विकास प्राधिकरण में तैनात उपाध्यक्ष प्रेम रंजन सिंह ने नक्शों और नामांतरण की सालों से पेंडिंग फाइलों को निपटाने का ‘मिशन’ चलाया है। अब तक ऐसी कई फाइलें पास हुई हैं जो 13 से लेकर 20 साल से पेंडिंग थीं। 65 वर्षीय गोरखनाथ सिंह की फाइल 13 साल से पेंडिंग थी, जो सिर्फ 10 दिन के अंदर पास हो गई।

गोरखपुर
गोरखपुर विकास प्राधिकरण में तैनात उपाध्यक्ष प्रेम रंजन सिंह इन दिनों अपने कामकाज के तरीके से लोगों का दिल जीत रहे हैं। नक्शों और नामांतरण की सालों से पेंडिंग फाइलों को निपटाने के उनके ‘मिशन’ ने कमाल कर दिया है। पिछले एक हफ्ते में ऐसी कई फाइलें पास हुई हैं जो 13 से लेकर 20 साल से पेंडिंग थीं। उनके इस काम के लिए शहर के एक बुजुर्ग ने दिल खोलकर उनकी तारीफ की है।

दरअसल 65 वर्षीय गोरख नाथ सिंह ने 13 साल पहले एक प्लॉट खरीदा था और उसके नामांतरण (म्यूटेशन) के लिए अप्लाई किया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 2008 से उनकी यह फाइल बाबुओं के जाल में फंसी थी। हालांकि हाल ही में गोरखपुर वीसी के पद पर तैनात हुए आईएएस अधिकारी प्रेम रंजन सिंह से मुलाकात के 10 दिन के अंदर उनकी यह फाइल पास हो गई।

’65 सालों में मैंने ऐसा अफसर नहीं देखा, खूब दुआएं’
एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में गोरखनाथ ने कहा, ‘मेरी उम्र 65 साल हो गई है। मैंने कई अफसर देखे, मगर हमारे मौजूदा वीसी साहब जैसा अफसर कभी नहीं देखा। मैंने उनसे करीब 10 दिन पहले मुलाकात की थी। मुलाकात में मैंने उन्हें अपनी परेशानी बताई कि कैसे मुझे 13 साल से नामांतरण के लिए दौड़ाया जा रहा है। उन्होंने मुझे बिठाकर चाय पिलाई और मेरी फाइल पर लिखकर दे दिया कि 2 दिन के अंदर इसका निस्तारण करें। जो काम इतने सालों से अटका था, वो उनसे मुलाकात के 10 दिनों के अंदर हो गया। मैं उन्हें खूब दुआएं देता हूं कि वो ऐसे ही नेक काम करते रहें।’

175 फाइलें ऐसी मिलीं, जो सालों से लटकी थीं
2014 बैच के आईएएस अफसर और गोरखपुर विकास प्राधिकरण के वीसी प्रेम रंजन सिंह ने एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में कहा, ‘मैंने हाल ही में गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) के वीसी का चार्ज लिया है। मैंने अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि पिछले एक साल में म्यूटेशन और नक्शे से संबंधित जितने भी आवेदन लंबित हैं, उनकी लिस्ट बनाई जाए और कैंप लगाकर उनका निस्तारण किया जाए। देखते ही देखते ऐसी करीब 175 फाइलें इकट्ठा हो गईं।’

20 साल से पेंडिंग थीं फाइलें, सबका हो गया काम
उन्होंने बताया, ‘हमने इन सभी आवेदकों को फोन लगाया और एक हॉल में सारे संबंधित कर्मचारियों को इन फाइलों के निस्तारण के लिए बिठा दिया। मैंने खुद वहां बैठकर इस सारे काम की मॉनिटरिंग की। नतीजा ये हुआ कि सालों से पेंडिंग फाइलें एक हफ्ते में निपट गईं। गोरखनाथ जी की फाइल 13 साल से पेंडिंग थी, वहीं एक शख्स ऐसे भी थे जिनकी फाइल 20 साल से अटकी थी।’

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