नीति आयोग ने बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर वाले मंत्रालयों के साथ सलाहकर उन संपत्तियों की सूची तैयार की है जहां एसेट मोनेटाइजेशन की संभावना है।  रेलव, सड़क परिवहन और हाईवे, जहाजरानी, टेलिकॉम, बिजली, नागरिक उड्डयन, पेट्रोलियम और नैचुरल गैस, युवा मामले और खेलआदि।

केंद्र सरकार घाटे में चल रही सार्वजनिक कंपनियों को बेच रही थी। लेकिन सरकार अब अपनी कमाई के लिए बुनियादी क्षेत्र की परियोजनाएं, जैसे रेल, सड़क, एयरपोर्ट, गैस पाइपलाइन, स्टेडियम, बिजली, गोदाम को निजी क्षेत्रों के बड़े खिलाड़ियों को कुछ समय के लिए देगी और उसके बदले में उनसे मोटा ‘किराया’ वसूल करेगी। आम बोल-चाल की भाषा में आप कह सकते हैं कि इन बड़े प्रोजेक्ट को सरकार किराये पर देगी।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन 2021-22 का बजट पेश कर रही थीं तभी उन्होंने नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन की चर्चा की थी। तब वित्त मंत्री ने कहा था कि बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर का खर्च जुगाड़ करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र यानी की सरकारी संपत्तियों का मोनेटाइजेशन मुख्य जरिया होगा. बता दें कि मोनेटाइजेशन का सीधा मतलब है मौद्रिकरण यानी कि पैसा कमाना, पैसा बनाना सरकार बड़ी परियोजनाओं का खर्च निकालने के लिए सरकारी संपत्तियों से पैसा कमाएगी

अब सवाल उठता है कि सरकार कैसे पैसा कमाएगी? किन सरकारी संपत्तियों से पैसा कमाएगी? नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन के तहत आठ मंत्रालयों की संपत्ति निजी कंपनियों किराये पर दी जा सकेगी। साझा करने का मतलब यह है कि किसी भी प्रोजेक्ट को सरकारी और निजी कंपनी मिलकर विकसित करेंगी और चलाएंगी जबकि किराये पर दिए जाने का अर्थ यह है कि पूरा प्रोजेक्ट ही निजी कंपनी को दिया जाएगा और सरकार इन कंपनियों से इसके एवज में पैसे लेगी।

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