ब्रेकिंग रिपोर्ट: प्रतापगढ़ जनपद का उभरता कस्बा रानीगंज – इतिहास, विकास और पहचान की पूरी कहानी

प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश), विशेष रिपोर्ट रुस्तम अली
लखनऊ वाराणसी राज्यमार्ग पर स्थित रानीगंज अब सिर्फ एक बाज़ार नहीं, बल्कि एक पहचान बन चुका है। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद में स्थित यह कस्बा ऐतिहासिक, राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से निरंतर विकास की ओर अग्रसर है। आइए जानते हैं रानीगंज के नामकरण से लेकर आज तक के सफर की विस्तारपूर्वक जानकारी।

️ रानीगंज का नाम क्यों पड़ा और कब बना बाज़ार?

रानीगंज बाज़ार का नाम ऐतिहासिक संदर्भों में एक रानी के नाम पर पड़ा, जो इस क्षेत्र में बसाहट और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए जानी जाती थी। कहा जाता है कि यह इलाका एक समय ‘रानी की गंज’ के नाम से जाना जाता था, जहां स्थानीय रियासत की रानी द्वारा व्यापार के लिए ज़मीन दान दी गई थी। समय के साथ यह ‘रानीगंज’ नाम से प्रसिद्ध हो गया।

यह बाज़ार लगभग 1880 के दशक में अस्तित्व में आया, जब आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग यहां व्यापार करने लगे। धीरे-धीरे यह प्रतापगढ़ जनपद के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में से एक बन गया।

रानीगंज थाना – 1982 में गठन

आपराधिक मामलों के नियंत्रण और क्षेत्रीय पुलिस व्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए 1982 में रानीगंज थाना की स्थापना हुई।थाना बनने के पश्चात् यह क्षेत्र अपनी पुलिस व्यवस्था में खुद‑निर्भर हुआ। इससे पहले यह आसपास के थानों के अधीन था।थाना बनने से रानीगंज को कानूनी मान्यता मिली और सुरक्षा व्यवस्था मजबूत हुई।

थाना बनने से लाभ (फायदे)

1. कानूनी मान्यता और प्रशासनिक मजबूती
– रानीगंज को एक अलग थाना बनने से शासन की नजर में क्षेत्र की पहचान बनी और यह एक स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई के रूप में उभरा।

2. अपराध नियंत्रण में सुधार
– स्थानीय स्तर पर पुलिस मौजूद रहने से चोरी, झगड़े, मारपीट, ज़मीनी विवाद जैसे मामलों पर त्वरित कार्रवाई संभव हुई।

3. जनता की आसान पहुँच
– पहले चांदा या रानीपुर थाना जाना पड़ता था, जो समय और खर्च दोनों में कठिन था। अब रानीगंज कस्बा और आसपास के गांवों के लिए पुलिस तक पहुँचना आसान हुआ।

4. सामाजिक सुरक्षा का विश्वास बढ़ा
– महिलाओं, व्यापारियों और आम नागरिकों में सुरक्षा की भावना बढ़ी, जिससे सामाजिक माहौल और व्यापारिक गतिविधियाँ सशक्त हुईं।

5. सरकारी योजनाओं और निगरानी का विस्तार
– थाने के जरिए शासन की निगरानी और योजनाओं का संचालन बेहतर हुआ, जैसे महिला हेल्पलाइन, साइबर सेल, आदि का लाभ मिलने लगा।

थाना बनने के नुकसान या चुनौतियाँ

1. पुलिसिया रवैये से असंतोष
– कुछ मामलों में पुलिस के व्यवहार को लेकर स्थानीय नागरिकों ने शिकायत की कि छोटी बातों पर सख्ती, या पक्षपातपूर्ण रवैया देखने को मिला।

2. राजनीतिक दखल और दबाव
– कई बार थाने के कार्य में क्षेत्रीय नेताओं या प्रभावशाली लोगों का हस्तक्षेप कानून व्यवस्था को प्रभावित करता है।

3. झूठे मुकदमों का बढ़ना
– थाना पास होने से कुछ लोग निजी दुश्मनी में झूठे मुकदमे भी दर्ज कराने लगे, जिससे निर्दोष लोगों को परेशानी झेलनी पड़ी।

4. संसाधनों की कमी (शुरुआती वर्षों में)
– शुरुआती समय में थाने में पर्याप्त स्टाफ, वाहन, और भवन की व्यवस्था सीमित थी, जिससे कुछ समय तक लोगों को सेवा मिलने में कठिनाई रही।

5. भ्रष्टाचार और जन असंतोष
– कुछ पुलिसकर्मियों द्वारा अवैध वसूली, एफआईआर दर्ज न करने, या पक्ष लेकर काम करने जैसे आरोप भी समय-समय पर लगे।

रानीगंज थाना की स्थापना ने क्षेत्र को सुरक्षा, कानूनी सुविधा और प्रशासनिक पहचान दी — लेकिन इसके साथ ही चुनौतियाँ भी सामने आईं। फिर भी, एक सक्रिय थाना के रूप में इसकी भूमिका क्षेत्रीय विकास और कानून व्यवस्था के संचालन में बेहद महत्वपूर्ण रही है।

1995 से रानीगंज CHC बना ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा का केंद्र

। तहसील मुख्यालय रानीगंज में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) वर्ष 1995 में स्थापित किया गया था, जिससे आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों को बड़ी राहत मिली।

स्थापना से पहले मरीजों को इलाज के लिए प्रतापगढ़ या प्रयागराज (इलाहाबाद)जाना पड़ता था, लेकिन CHC खुलने के बाद स्थानीय स्तर पर प्रसूति, टीकाकरण, इमरजेंसी सेवाएं, और सामान्य बीमारियों का इलाज यहीं होने लगा।

यह केंद्र आज 50 से अधिक गांवों की स्वास्थ्य ज़रूरतों को पूरा कर रहा है। हर महीने हजारों की संख्या में  मरीजों की OPD और सैकड़ों में प्रसव की सेवाएं दी जा रही हैं।

हालांकि, विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी, पुरानी इमारत, और संसाधनों की सीमाएं अब भी बड़ी चुनौती हैं। अधिक तर डॉक्टर नदारद ही रहते है कुछ ही डाक्टरों के भरोसे चल रहा है जिस तरह से यह राज्यमार्ग पर स्थिति है सभी सुविधाएं होनी चाहिए लेकिन ऐसा है नहीं

विशेषज्ञ डॉक्टर व संसाधनों की कमी,  जनता की मांग – CHC को मिले और बेहतर सुविधाएं, ताकि इलाज हो यहीं पर सरकार से CHC को मिनी-अस्पताल में बदलने की मांग उठाई जा रही है।

रानीगंज ट्रॉमा सेंटर – लगभग 2020 में शुरू हुआ

रानीगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) में 2020 में ट्रॉमा सेंटर की आंशिक रूप से शुरू किया गया। इसका उद्देश्य था कि सड़क दुर्घटनाएं, गंभीर चोट, मारपीट और अन्य आपातकालीन स्थितियों में तेज़ और बेहतर इलाज मिल सके।

हालांकि जमीनी हकीकत इससे अलग है। रोज़ाना करीब 300 मरीज ओपीडी में इलाज के लिए पहुंचते हैं, साथ ही गंभीर केस भी लगातार आते हैं — लेकिन पूरे ट्रॉमा सेंटर को सीमित डॉक्टर और सीमित स्टाफ संभाल रहा है।

ना तो जरूरी मेडिकल मशीनें हैं, ना ICU, ना ही पर्याप्त विशेषज्ञ डॉक्टर। मरीजों को गंभीर स्थिति में ज़िला अस्पताल या प्रयागराज रेफर करना पड़ता है।

सिर्फ बोर्ड लगा है, सुविधा नहीं – ट्रॉमा सेंटर के नाम पर सिर्फ भवन और बोर्ड बना है, लेकिन अब तक इसे पूरी तरह क्रियाशील नहीं किया गया।

जनता की मांग है कि शासन इसे जल्द से जल्द पूर्ण सुविधाओं के साथ चालू करे, ताकि लोगों को समय पर इलाज मिल सके और जान बचाई जा सके।

रानीगंज तहसील का इतिहास और गठन (2005)

 प्रस्तावना: उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद में स्थित रानीगंज, लंबे समय तक केवल एक व्यापारिक कस्बा और प्रशासनिक रूप से अन्य तहसीलों के अधीन रहा। लेकिन बढ़ती आबादी, प्रशासनिक दबाव और क्षेत्रीय जरूरतों को देखते हुए इसे स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई के रूप में विकसित करने की आवश्यकता महसूस हुई। रानीगंज क्षेत्र पट्टी तहसील के अंतर्गत आता था। यहाँ के लोगों को ज़मीनी कार्य, आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र या राजस्व विवादों के निपटारे के लिए दूर तहसील कार्यालयों का चक्कर लगाना पड़ता था। व्यापारिक गतिविधियों के साथ-साथ शैक्षिक और सामाजिक संस्थाओं की वृद्धि के कारण स्थानीय लोगों ने एक स्वतंत्र तहसील की मांग उठाई। कई बार जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों द्वारा ज्ञापन सौंपे गए।उत्तर प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2005 में रानीगंज को एक स्वतंत्र तहसील का दर्जा दिया गया। इसके साथ ही यहाँ पर उपजिलाधिकारी (SDM) की तैनाती की गई और राजस्व विभाग की अलग प्रशासनिक व्यवस्था प्रारंभ हुई।

तहसील बनने के मुख्य उद्देश्य:

स्थानीय स्तर पर राजस्व प्रशासन को सुलभ बनाना

दस्तावेज़ी कार्यों को तेजी से निपटाना

जनता को सुलभ और पारदर्शी सेवाएँ प्रदान करना

राजनीतिक और विकासात्मक पहचान सुनिश्चित करना

वर्तमान स्थिति (2025):

आज रानीगंज तहसील प्रतापगढ़ जनपद की एक प्रमुख प्रशासनिक इकाई बन चुकी है। इसमें कई ब्लॉक, दर्जनों ग्राम पंचायतें, सरकारी संस्थाएं और न्यायिक इकाइयाँ सक्रिय रूप से कार्यरत हैं। यहाँ तहसील दिवस, जनसुनवाई, आय-जाति प्रमाण पत्र, भूमि नकल इत्यादि सभी कार्य स्थानीय स्तर पर ही संपन्न हो जाते हैं।

  रानीगंज तहसील का गठन केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं था, बल्कि यह स्थानीय जनता की वर्षों की मेहनत, मांग और संघर्ष का परिणाम था।

रेलवे स्टेशन का निर्माण

दादूपुर रेलवे स्टेशन, लखनऊ-वाराणसी रेल मार्ग पर स्थित है, और इसके निर्माण की सटीक तारीख उपलब्ध नहीं है। हालांकि, यह स्टेशन लखनऊ-वाराणसी रेल मार्ग के खुलने के बाद ही बना होगा। लखनऊ-वाराणसी रेल मार्ग का निर्माण 19वीं शताब्दी के अंत में हुआ था, और दादूपुर स्टेशन इस मार्ग का एक हिस्सा है। 

लखनऊ-वाराणसी रेल मार्ग, जिसे पहले अवध और रोहिलखंड रेलवे के रूप में जाना जाता था, 1872 में खोला गया था। यह मार्ग लखनऊ और वाराणसी के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी था, और इस पर कई स्टेशन बनाए गए थे, जिनमें दादूपुर भी शामिल है। 

दादूपुर स्टेशन का सटीक निर्माण वर्ष ज्ञात नहीं है, लेकिन यह 1872 के बाद कभी भी बनाया गया होगा। 

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