“क्या प्रतापगढ़ पुलिस की ‘आत्मरक्षा’ की आड़ में सच्चाई छुपाई जा रही है? एक ही रात में पुलिस पर चार फायरिंग और उठी निष्पक्ष जांच की मांग!”
प्रतापगढ़ जिले में अपराधियों के बढ़ते हौसले ने कानून व्यवस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया है। सोमवार की रात जिले में चार अलग-अलग जगहों पर पुलिस टीमों पर अपराधियों ने गोलियां चलाईं, जिससे न सिर्फ जनपद में दहशत फैल गई, बल्कि पुलिस की सुरक्षा और कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल उठने लगे हैं।
इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिष्ठित अधिवक्ता सुजतुल्ला खान ने फेसबुक पोस्ट के जरिए कड़ी प्रतिक्रिया दी है और प्रतापगढ़ पुलिस के रवैए पर तीखा सवाल उठाया है।

“आत्मरक्षा सिर्फ पुलिस का अधिकार नहीं!” – अधिवक्ता सुजातुल्ला खान
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फेसबुक पोस्ट में अधिवक्ता सुजातुल्ला खान ने लिखा कि
“प्रतापगढ़ पुलिस और एसपी डॉ. अनिल कुमार के लिए यह शर्मनाक स्थिति है कि एक ही रात में चार अलग-अलग जगहों पर पुलिस पर अपराधियों ने फायरिंग कर दी। ऐसे हालात में क्या आम जनता सुरक्षित है?”
उन्होंने प्रतापगढ़ पुलिस द्वारा बीते 5 वर्षों में की गई तमाम मुठभेड़ों पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि
“पुलिस हमेशा ‘आत्मरक्षा’ का हवाला देकर मुठभेड़ों को सही ठहराती है, आरोपी घायल होते हैं, केस दर्ज होते हैं — लेकिन क्या कभी किसी पुलिसकर्मी पर कोई कार्रवाई हुई? नहीं। जबकि यही आत्मरक्षा यदि कोई आम नागरिक करे तो उसे सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़नी पड़ती है।”
जांच की मांग
अधिवक्ता सुजतुल्ला खान ने यह भी मांग की है कि
“पिछले 5 वर्षों में प्रतापगढ़ पुलिस द्वारा ‘आत्मरक्षार्थ’ की गई सभी मुठभेड़ों की जांच माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की निगरानी में कराई जानी चाहिए, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि हर बार गोली चलाना जरूरी था या नहीं?”
उनका यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है और समाज के बुद्धिजीवी वर्गों के बीच भी चर्चा का विषय बन चुका है।
बड़े सवाल जो प्रशासन को मथ रहे हैं:
क्या प्रतापगढ़ पुलिस अपराध रोकने में विफल हो चुकी है?
‘आत्मरक्षा’ की आड़ में कहीं कुछ और तो नहीं हो रहा?
आम नागरिक और पुलिस के अधिकारों में इतना अंतर क्यों?
हर मुठभेड़ क्या सही कारणों पर आधारित होती है?
जनता की प्रतिक्रिया:
स्थानीय लोगों का कहना है कि अब अपराधी इतने निडर हो चुके हैं कि पुलिस को ही निशाना बना रहे हैं। “अगर पुलिस की वर्दी सुरक्षित नहीं, तो आम आदमी की क्या बिसात?” — एक स्थानीय व्यापारी ने गुस्से में कहा।
न्याय के लिए जांच जरूरी:
अधिवक्ता सुजतुल्ला खान का यह सवाल न केवल पुलिस की कार्यशैली पर सवाल है, बल्कि यह लोकतंत्र और संविधान के बुनियादी उसूलों पर भी चोट है। अगर हर बार आत्मरक्षा के नाम पर गोली चलाई जाती रही, और कोई पूछने वाला न हो — तो फिर कानून किसके लिए है?