“आजादी के 78 साल बाद भी नहीं बना पुल: तेज बारिश में बहा बांस का पुल, अब दाने-दाने को तरस रहे ग्रामीण”

रिपोर्ट: रुस्तम अली, प्रतापगढ़ ✍️

प्रतापगढ़।एक तरफ देश चांद तक पहुंच चुका है, हाईवे और एक्सप्रेसवे की दौड़ में करोड़ों खर्च हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ प्रतापगढ़ जिले की एक सच्चाई ऐसी है जो न सिर्फ चौकाती है, बल्कि लोकतंत्र पर गंभीर सवाल भी खड़े करती है।

आजादी को 78 साल हो गए, लेकिन प्रतापगढ़ जनपद के रानीगंज और विश्वनाथगंज विधानसभा के बीच बहने वाली बकुलाई नदी आज भी दर्जनों गांवों के लिए दुश्वारी का सबब बनी हुई है।  गजेहड़ा, पहाड़पुर, खंडापार,सहित करीब एक दर्जन गांवों की कुल आबादी लगभग 35 हजार है, जो आज भी नदी पार करने के लिए बांस और लकड़ी के अस्थायी पुल पर निर्भर हैं।गांवों के लोग अब भी अपने पैसे से बांस और लकड़ी का पुल बनाकर जान जोखिम में डालने को मजबूर हैं।

हाल ही में हुई तेज बारिश के बाद यह अस्थायी पुल बह गया, जिससे पूरे इलाके की आवाजाही पूरी तरह ठप हो गई। गांवों के बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे, बीमार अस्पताल नहीं पहुंच पा रहे, और लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं। बाजार से जरूरी सामान तक नहीं आ पा रहा।

78 वर्षों से नहीं बदली तस्वीर: अब‘पुल नहीं तो वोट नहीं’ का ऐलान

स्थानीय लोगों का कहना है कि आजादी के बाद से लेकर अब तक कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन उनकी सबसे जरूरी मांग — स्थायी पुल — सिर्फ चुनावी वादों में ही दबकर रह गई।
अब ग्रामीणों ने दो टूक कह दिया है – “पुल नहीं तो वोट नहीं”।

ग्रामीणों के मुताबिक, हर चुनाव में नेता इसी लकड़ी के पुल से गुजरते हैं, बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन जीतने के बाद इलाके को भूल जाते हैं। कई बुजुर्ग ऐसे हैं जो कहते हैं – “हमारी जिंदगी तो अब खत्म हो गई, लेकिन उम्मीद है कि अगली पीढ़ी को कम से कम पक्का पुल नसीब हो।”

मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र, विकास से कोसों दूर

गजेहड़ा व खंडापार जैसे गांव मुस्लिम बहुल क्षेत्र हैं। यहां के लोग बताते हैं कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसी पार्टियां जिनका वोटबैंक मुस्लिम समाज रहा है, वो भी इस क्षेत्र में कोई स्थायी विकास कार्य नहीं करा सकीं।
वर्तमान में प्रतापगढ़ से समाजवादी पार्टी के सांसद हैं, रानीगंज से विधायक भी समाजवादी पार्टी से हैं, लेकिन क्षेत्र की इस मूलभूत समस्या पर किसी का ध्यान नहीं गया।

स्थानीय लोग आरोप लगाते हैं कि नेताओं का ध्यान केवल “व्यक्ति विशेष” या उनके “एजेंटों” पर रहता है, जनता की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं रखा जाता।

अब लोगों को योगी सरकार से उम्मीद

जब हर सरकार नाकाम रही, तो अब ग्रामीणों की नजरें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर टिक गई हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यदि योगी सरकार ने इस बार उनकी बात नहीं सुनी, तो आने वाले चुनाव में वे मतदान का बहिष्कार कर देंगे।

“अब बहुत हो चुका। बांस-लकड़ी का पुल हर साल बह जाता है, और हम हर बार अपनी जान को खतरे में डालकर नदी पार करते हैं। नेता आते हैं, वादे करते हैं, फिर गायब हो जाते हैं। अबकी बार नहीं – अब पुल नहीं तो वोट नहीं।”

नदी पार करने को फिर शुरू होगा चंदा वसूली

अब जब नदी का जलस्तर थोड़ा कम होना शुरू हुआ है, तो गांव के लोग चंदा इकट्ठा करके एक बार फिर बांस और लकड़ी का पुल बनाने में लग जाते हैं। यह देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार की लापरवाही ने ग्रामीणों को किस हाल में छोड़ दिया है।

सवालों के घेरे में जनप्रतिनिधि और तंत्र

यह घटना सिर्फ एक पुल की नहीं, बल्कि सिस्टम की विफलता की कहानी है।
78 साल बाद भी यदि लोग खुद चंदा इकट्ठा करके पुल बना रहे हैं, तो यह लोकतंत्र के मुंह पर तमाचा है।

सरकार, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए, तत्काल स्थायी पुल निर्माण की कार्यवाही शुरू करनी चाहिए। वरना आने वाले चुनावों में जनता का गुस्सा किसी राजनीतिक भूकंप से कम नहीं होगा।

मो. करीम (72) कहते हैं
“अब तो ऊपर जाने का वक्त आ गया है, लेकिन रोज़ मौत के मुंह में जाकर नदी पार करना पड़ता है। वोट के वक़्त नेताजी इसी पुल से आते हैं, फिर पांच साल तक दर्शन नहीं होते।”

गांव की महिला बानो बीबी कहती हैं –
“हमारे बच्चे स्कूल छोड़ दिए, बीमार घरों में तड़प रहे हैं। क्या यही है ‘सबका साथ, सबका विकास’?”

युवक लियाक़त अली का तंज
“सांसद साहब केवल ट्विटर या सोशल मीडिया पर दिखते हैं, जमीनी हकीकत देखने की कभी फुर्सत नहीं। विधायक जी को तो यहां की बातें सुनना भी गंवारा नहीं।”

दुकानदार शमीम अख्तर बोले –
“नेताओं के एजेंट और चमचे ही सारे काम करवाते हैं। जनता की आवाज कभी सांसद-विधायक तक नहीं पहुंचती।”

टीचर रामकिशोर  ने कहा –
“विधायक को लगता है जैसे जनता की बात सुनना उनकी बेइज्जती है।”

गांव की महिला बोलीं –
“बीमारी हो या शादी-ब्याह, हर बार यही डर लगता है कि ये लकड़ी कब टूट जाए। पुल नहीं, तो हम भी अब वोट नहीं देंगे।”

यह केवल एक पुल की नहीं, बल्कि सिस्टम की संवेदनहीनता की दर्दनाक तस्वीर है।

किस तरह से जान जोखिम में डाल बाइक को पैदल ले कर जाते
महिलाएं बच्चे इसी पुल से गुजरते
बाइक सवार बाइक लेकर जाता लकड़ी के पुल से
जोख़िम भरा पुल लेकिन स्कूल जाने को मजबूर ये नन्हे मुन्ने बच्चे

अब सामने आए सपा अल्पसंख्यक जिलाध्यक्ष साबिर अली – कहा, “ये विकास की नहीं, इंसानियत की हार है”

जब जनप्रतिनिधि चुप हैं, तो अब समाजवादी पार्टी के अल्पसंख्यक जिलाध्यक्ष साबिर अली ने इस गंभीर मुद्दे को लेकर आवाज उठाई है।

साबिर अली का बयान
“35 हजार की आबादी आज भी बांस-लकड़ी के पुल पर जिंदगी ढो रही है, ये केवल विकास की नहीं, इंसानियत की भी हार है। हम शासन प्रशासन से मांग करते हैं कि जल्द से जल्द स्थायी पुल का निर्माण कराया जाए। वरना लोग आंदोलित होंगे।”

साबिर अली ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो वो खुद आंदोलन का नेतृत्व करेंगे और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ज्ञापन सौंपकर इस इलाके के दर्द से अवगत कराएंगे।

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