योगी की तारीफ करना पड़ा भारी, सपा विधायक पूजा पाल पार्टी से निष्कासित — अतीक मामले से लेकर बगावत तक का पूरा सफर

कौशांबी की चायल विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी की विधायक पूजा पाल को अखिलेश यादव ने गुरुवार को पार्टी से तत्काल प्रभाव से निष्कासित कर दिया। यह कार्रवाई ऐसे वक्त में हुई जब उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की खुलकर प्रशंसा की। पूजा पाल ने सदन में अपने पति राजू पाल की हत्या का जिक्र करते हुए कहा था— “मेरे पति के हत्यारों को सजा दिलाकर मुख्यमंत्री योगी ने मुझे न्याय दिलाया है।”

योगी की तारीफ और सपा की सख्ती

बीते कुछ दिनों से पूजा पाल और सपा के रिश्तों में तल्खी साफ झलक रही थी। गुरुवार को जारी अखिलेश यादव के हस्ताक्षर वाले पत्र में स्पष्ट लिखा गया कि पूजा पाल पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रही हैं। उन्हें पहले भी चेतावनी दी गई थी, लेकिन उन्होंने अपना रुख नहीं बदला। पत्र में कहा गया— “आपके कार्यों से पार्टी की छवि को नुकसान हुआ है। यह गंभीर अनुशासनहीनता है। अतः आपको समाजवादी पार्टी और इसके सभी पदों से तत्काल प्रभाव से निष्कासित किया जाता है।”

साथ ही आदेश में यह भी लिखा गया कि पूजा पाल अब पार्टी के किसी कार्यक्रम, बैठक या आयोजन में शामिल नहीं होंगी और न ही उन्हें बुलाया जाएगा।

राज्यसभा चुनाव में बगावत की पृष्ठभूमि

पूजा पाल का पार्टी से दूरी बनाना नया नहीं था। 2024 के राज्यसभा चुनाव के दौरान उन्होंने भाजपा के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की थी। इस दौरान कुल आठ सपा विधायकों ने बगावत की थी। इनमें से चार को हाल ही में निष्कासित कर दिया गया था। उस समय अखिलेश यादव ने कहा था कि बाकी विधायकों को “सुधरने का मौका” दिया गया है। लेकिन पूजा पाल की लगातार अलग लाइन लेने और अब मुख्यमंत्री योगी की खुलेआम तारीफ करने के बाद यह मौका खत्म हो गया।

राजू पाल हत्या कांड — एक दर्दनाक शुरुआत

पूजा पाल के राजनीतिक और निजी जीवन की सबसे बड़ी घटना 2005 का राजू पाल हत्या कांड है।

2004 में अतीक अहमद इलाहाबाद पश्चिमी सीट छोड़कर सांसद बने तो उपचुनाव में उनके भाई अशरफ को सपा ने टिकट दिया।

बसपा से उम्मीदवार बने राजू पाल ने अशरफ को हराकर विधायक की कुर्सी पर कब्जा जमाया।

जिसके बाद 25 जनवरी 2005 को दिनदहाड़े ताबड़तोड़ फायरिंग कर राजू पाल की हत्या कर दी।

इस हत्या का आरोप  अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ अहमद पर लगा। वर्षों तक यह मामला चर्चा में रहा।

राजनीतिक सफर में करवट

पति की मौत के बाद पूजा पाल ने राजनीति में कदम रखा। शुरू में उन्होंने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन बाद में सपा में शामिल हो गईं।

2012 में सपा से पहली बार विधायक बनीं।

2022 में फिर सपा टिकट पर कौशांबी की चायल सीट से जीत हासिल की।

हालांकि, सपा में रहते हुए भी उनका रिश्ता कई बार नेतृत्व से खटास भरा रहा।

योगी की तारीफ — सपा में ‘रेड लाइन’

विधानसभा सत्र के दौरान जब पूजा पाल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफ की, तो उन्होंने सीधे-सीधे सपा की राजनीतिक लाइन को चुनौती दी। उन्होंने कहा—
“मेरे पति के हत्यारों को जेल भेजना और सजा दिलाना मेरे लिए न्याय की सबसे बड़ी जीत है। इसके लिए मैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आभारी हूं।”

सपा के लिए यह बयान एक ‘रेड लाइन’ पार करने जैसा था, क्योंकि अतीक अहमद और अशरफ मामले में पार्टी का रुख पहले से संवेदनशील रहा है।

निष्कासन के राजनीतिक मायने

पूजा पाल के निष्कासन के कई राजनीतिक संकेत हैं—

1. सपा में अनुशासन की सख्ती — अखिलेश यादव लगातार यह संदेश दे रहे हैं कि पार्टी विरोधी गतिविधियों और भाजपा से नजदीकी की कोई जगह नहीं।

2. क्रॉस वोटिंग करने वालों पर एक्शन — बाकी बागी विधायकों पर भी नजर है, और यह कार्रवाई आगे की सख्त कदमों की शुरुआत मानी जा रही है।

3. कौशांबी में समीकरण बदलना — पूजा पाल के निष्कासन से इस सीट पर 2027 के विधानसभा चुनाव में नया समीकरण बन सकता है।

आगे क्या? पूजा पाल के निष्कासन के बाद यह सवाल उठ रहा है कि वह आगे किस दल में जाएंगी। भाजपा की ओर उनके झुकाव के संकेत पहले से मिल रहे हैं, खासकर राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग और सीएम योगी की तारीफ के बाद। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि 2027 में वह भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ सकती हैं।


पूजा पाल का निष्कासन केवल एक विधायक के खिलाफ कार्रवाई नहीं, बल्कि सपा के अंदर अनुशासन की लकीर खींचने जैसा है। योगी आदित्यनाथ की तारीफ और भाजपा के पक्ष में क्रॉस वोटिंग करना अखिलेश यादव के लिए असहनीय था। 2005 के राजू पाल हत्याकांड से शुरू हुई उनकी राजनीतिक यात्रा अब एक नए मोड़ पर है, जहां आने वाले दिनों में उनके अगले कदम पर सबकी नजरें होंगी।

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