ग्रामीणों की अपील आप सब से जनप्रतिनिधियों से उम्मीद टूटी तो खुद लोहे पुल बनाने का काम शुरू किया है। पुल का खर्च करीब 4,50,000 रुपये है, लेकिन उनके पास सिर्फ 130,000 रुपये ही जुटे हैं। गांव वाले सभी लोगों से अपील करते हैं कि आगे आएं, चंदा दें,जिससे जो भी हो सके मदद करें, ताकि यह पुल जल्द से जल्द बन सके और गांव के 15 गांवों की जिंदगी फिर से पटरी पर लौट सके।

प्रतापगढ़।जनपद के रानीगंज विधानसभा क्षेत्र में बकुलाही नदी पर बना बांस का पुल बारिश में बह जाने से 15 गांवों की जिंदगी थम गई। शिक्षा, चिकित्सा, खेती-बारी और यहां तक कि सुरक्षा से जुड़ी हर उम्मीद उसी पुल पर टिकी थी। लेकिन जब जनप्रतिनिधियों—सांसद और विधायक—ने हाथ खड़े कर दिए, तब ग्रामीणों ने ठान लिया कि अब अपनी ताकत और अपने पैसों से ही पुल बनाएंगे।

यह पुल प्रयागराज-अयोध्या हाइवे से महज 500 मीटर की दूरी पर है, लेकिन सुविधा के नाम पर लोग दशकों से सिर्फ बांस और लकड़ी के पुल पर निर्भर रहे। तीन अगस्त को पुल बह जाने के बाद हालात ऐसे हो गए कि बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे थे, मरीज अस्पताल तक नहीं पहुंच पा रहे थे और किसी गांव में मौत होने पर अंतिम संस्कार तक की प्रक्रिया मुश्किल हो गई।

जनप्रतिनिधियों से निराश हुए लोग

ग्रामीणों ने सबसे पहले रानीगंज विधायक डॉ. आर.के. वर्मा से गुहार लगाई। लेकिन उनका जवाब था—
“मैंने विधानसभा कार्यसूची में डाल दिया है, अब मेरे पास मत आओ, मंत्री से मिलो।”

लोग कहते हैं कि विधायक का यह रवैया बेहद निराशाजनक रहा। समाजवादी पार्टी से विधायक होने के नाते ग्रामीणों को उम्मीद थी कि वे गंभीरता से पहल करेंगे, लेकिन उनकी बातों ने आक्रोश को और बढ़ा दिया।

इसके बाद ग्रामीण समाजवादी पार्टी के सांसद एस.पी. पटेल के पास पहुंचे। लेकिन वहां से भी समाधान नहीं मिला। सांसद ने सरकार को दोषी ठहराते हुए कहा—
“सरकार निकम्मी है, क्या करें, मेरे पास बजट नहीं है।”

ग्रामीणों के मुताबिक, सांसद का जवाब केवल बहानेबाजी था। अब लोग कह रहे हैं कि जब वोट मांगने का समय आएगा, तो यही नेता फिर दिखेंगे।

गांव वालों ने ठानी—अब खुद बनाएंगे पुल

जब जनप्रतिनिधियों ने जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया, तब गांव के लोगों ने खुद चंदा इकट्ठा करना शुरू किया। गांव-गांव से अपील की गई। अब तक करीब 130,000 रुपये जमा हुए हैं, जबकि लोहे का पुल बनाने का अनुमानित खर्च करीब 4,50,000 रुपये है।

लोगों का कहना है कि लकड़ी का पुल अब किसी काम का नहीं। इसलिए इस बार स्थायी समाधान के लिए लोहे का पुल बनाया जाएगा। ग्रामीणों ने अपने स्तर पर काम भी शुरू कर दिया है।

गांव के लोगों की पीड़ा और जज्बा

गांव के नफीस कहते हैं—
“सांसद कह रहे हैं सरकार निकम्मी है। तो क्या जनता का काम करवाना उनका काम नहीं? हमारे पास बजट नहीं है, यही बहाना क्यों? जनता किस पर भरोसा करे?”

एक बुजुर्ग ग्रामीण ने कहा—
“रानीगंज विधायक से मिले तो उन्होंने कह दिया कि अब आप सब मंत्री से मिलो। हमने तो सोचा था हमारे विधायक हमारी आवाज बनेंगे, लेकिन उन्होंने तो पल्ला झाड़ लिया।”

गांव के मुनीर अहमद बोले—
“65 साल से हम लोग लकड़ी के पुल से गुजर रहे हैं। हर बार चुनाव में नेता आते हैं, पुल बनाने का वादा करते हैं और चुनाव खत्म होते ही वादे बह जाते हैं।”

वहीं एक महिला ग्रामीण ने कहा—
“बीमार पड़ जाएं तो सबसे बड़ी दिक्कत होती है। एंबुलेंस पुल पार नहीं कर पाती। कई बार लोग इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं। अब हम खुद ही पुल बनाएंगे।”

गांव के रिजवान का कहना है कि गांव के लोग पिछले 10 दिन से मेहनत कर चंदा कर के पुल बन रहे है पानी में हम सब घुस के गाटर खड़ा कर रहे है काफी मेहनत लगती है सुबह से शाम तक पानी में ही गुजर रहा है

गांव के ही दो बच्चों ने पानी से बताया कि इस क्षेत्र के विधायक धीरज ओझा है जो भाजपा के विधायक है। और किसी ने बताया कि सपा के विधायक आर के वर्मा है तो बच्चों ने कहा नहीं धीरज ओझा विधायक है जिसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा

15 गांवों की जिंदगी जुड़ी है पुल से

गुलरा मेहदौरी, पहाड़पुर, गंजेहड़ा समेत आसपास के करीब 15 गांव इस पुल पर निर्भर हैं। लोग खेती का सामान बाजार तक इसी रास्ते से ले जाते थे। बच्चों का स्कूल जाना, बीमारों का इलाज कराना और यहां तक कि शादी-ब्याह और अंतिम संस्कार जैसे जरूरी काम भी इसी पुल पर आधारित थे।

बारिश में पुल बहने के बाद लोगों की जिंदगी ठप हो गई। स्कूल के बच्चों को लंबा चक्कर लगाना पड़ रहा है। खेतों में काम करने वाले किसानों का कहना है कि उपज बेचने के लिए बाजार जाना अब नामुमकिन हो गया है।

लोगों का संदेश—अपनों पर भरोसा

ग्रामीणों ने साफ संदेश दिया है कि नेता सिर्फ वादे करते हैं, लेकिन असली ताकत जनता में है। गांव वालों का कहना है कि इस बार पुल सिर्फ बांस और लकड़ी का नहीं होगा, बल्कि लोहे का होगा ताकि आने वाली पीढ़ियां परेशान न हों।

गांव के युवाओं ने एक स्वर में कहा—
“अब उम्मीद सिर्फ अपनों से है। हम सब मिलकर पुल बनाएंगे। चाहे चंदा लगाकर, चाहे मेहनत लगाकर, लेकिन पुल जरूर बनेगा।”

जनाक्रोश और सवाल

यह पूरा घटनाक्रम प्रतापगढ़ की राजनीति पर कई सवाल खड़े करता है—

आखिर क्यों जनता को हर बार नेताओं के वादों का शिकार होना पड़ता है?

विधायक और सांसद जनता की बुनियादी समस्या से क्यों पल्ला झाड़ रहे हैं?

क्या जनता सिर्फ वोट बैंक है और असली जरूरतों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाएगा?

रानीगंज विधानसभा क्षेत्र के इस पुल ने न सिर्फ ग्रामीणों की मजबूरी को उजागर किया है, बल्कि उनकी ताकत और एकजुटता को भी साबित किया है। जब नेताओं ने मुंह मोड़ा, तब जनता ने अपनी हिम्मत दिखाई।

आज ये गांव वाले खुद लोहे का पुल बनाने का संकल्प ले चुके हैं। उनके लिए यह पुल सिर्फ रास्ता नहीं, बल्कि जीवन का सहारा है।

यह कहानी बताती है कि नेता वादों से खेल सकते हैं, लेकिन असली ताकत जनता में है, जो चाहे तो अपने दम पर जिंदगी की सबसे बड़ी मुश्किलों का समाधान कर सकती है।

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