के कड़े पहरे के बीच 20-21 साल के कुछ लड़के सिर और कंधों पर बैग लादे पैदल चलते जा रहे थे। उनके चेहरे देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि वह काफी दूर से पैदल चलते हुए आ रहे थे। किसी ने मास्क पहना था, तो किसी ने मुंह पर रूमाल बांधा हुआ था। सब आपस में थोड़ी दूरी बनाकर चल रहे थे। तभी बॉर्डर पर तैनात एक पुलिसकर्मी ने उन्हें रोक कर पूछा, कहां जा रहे हो?
उनमें से एक लड़के ने बताया कि वे लोग हापुड़ जा रहे हैं। पुलिसवाले ने पूछा कि इतनी दूर कैसे जाओगे? बस-ट्रेनें तो चल नहीं रही हैं और दूसरी गाड़ियां भी बंद है? लड़के ने कहा कि कोई साधन नहीं मिला, तो पैदल ही जाएंगे। पूछताछ में पता चला कि वे लोग गांधी नगर इलाके में दिहाड़ी पर मजदूरी करते थे, लेकिन लॉकडाउन से उन्हें कोई काम नहीं मिल पा रहा है। उनके पास जितने पैसे थे, वह भी अब खत्म होने को आए हैं, इसलिए वे घर लौट रहे हैं।
पढ़ें- गडकरी का ऐलान, नहीं होगी टोल प्लाजा पर वसूली
पुलिसवाले ने उन पर तरस खाते हुए पूछा कि साथ में कुछ खाने-पीने के लिए है या नहीं? इस पर लड़के और उसके साथियों ने अपने बैग पर हाथ रखते हुए कहा कि हां, खाने का सामान है। तभी एक लड़के ने बताया कि पीने का पानी खत्म हो गया है। इस पर पुलिसवाले ने अपने पास रखी कैन से उसकी बोतल में पानी भरा और सभी लड़कों को पानी पिलाया। इसके बाद उन्हें जाने दिया।
दिहाड़ी मजदूरों का रोजगार हुआ ठप
कोरोना की वजह से जब से दिल्ली-एनसीआर में तमाम काम-धंधे ठप हुए हैं, तब से उन लोगों का यह हाल है, जो रोज मेहनत करके कमाते थे और शाम को चूल्हा जलाते थे। यूपी-बिहार से आए नौजवान और बड़ी उम्र के भी ऐसे तमाम लोगों के सामने अब जिंदगी के साथ-साथ रोजगार का संकट पैदा हो गया है। ऐसे में उन्हें फिलहाल घर लौटना ही बेहतर लग रह है। सरकार के तमाम आश्वासनों के बावजूद न तो अपने मालिकों की तरफ से उन्हें कोई मदद मिल रही है और ना मकान मालिक या राशन देने वाले उन पर तरस खा रहे हैं। ऐसे में दिल्ली से अब बड़ी संख्या में लोगों का पलायन शुरू हो गया है और कोई साधन नहीं मिलने के बावजूद लोग पैदल ही अपने घरों के लिए निकल गए हैं।
इस्तेखार अहमद