ब्रेकिंग न्यूज़ | रानीगंज ट्रॉमा सेंटर बना खुद बीमार, डॉक्टर खुले आसमान के नीचे इलाज करने को मजबूर
रिपोर्ट: रुस्तम अली
प्रतापगढ़ जनपद के रानीगंज ट्रॉमा सेंटर की हालत बेहद चिंताजनक हो गई है। यह ट्रॉमा सेंटर न सिर्फ रानीगंज तहसील मुख्यालय पर स्थित है, थाना ,नगर पंचायत मुख्यालय का अहम हिस्सा है बल्कि लखनऊ-वाराणसी राष्ट्रीय राज्यमार्ग जैसे व्यस्त और दुर्घटनाप्रवण मार्ग के किनारे बना है। फिर भी यहां बिजली की नियमित आपूर्ति और बैकअप सिस्टम जैसी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं।
डॉक्टर चैंबर छोड़ खुले में कर रहे इलाज
ताजा तस्वीरों में देखा जा सकता है कि ट्रॉमा सेंटर में बिजली न होने के कारण डॉक्टरों को अपने चैंबर से बाहर निकलकर अस्पताल के कैंपस में खुले आसमान के नीचे मरीजों का इलाज करना पड़ रहा है। महिलाएं, बुज़ुर्ग और मासूम बच्चे – सब धूप में लाइन में खड़े होकर इलाज की आस लगाए दिखे।
ट्रॉमा सेंटर या अंधकार का केंद्र?
हर दिन लगभग 300 मरीज यहां इलाज के लिए पहुंचते हैं।
बिजली कटते ही खून जांच, एक्स-रे, ऑपरेशन, इमरजेंसी सेवाएं पूरी तरह से बंद हो जाती हैं।
जनरेटर मौजूद होने के बावजूद उसे चालू नहीं किया जाता, जिससे इलाज पूरी तरह से बाधित हो जाता है।
राज्यमार्ग पर होने वाली दुर्घटनाओं के गंभीर घायलों के लिए यह स्थिति जानलेवा बन जाती है।
ड्यूटी स्टाफ भी बिना रोशनी के ठीक से काम नहीं कर पाता, जिससे इमरजेंसी में देरी हो जाती है।
प्रतापगढ़ के लखनऊ-वाराणसी राज्यमार्ग पर स्थित रानीगंज ट्रॉमा सेंटर, जो कई दर्जनों गांवों, कस्बों और हादसों के शिकार लोगों के लिए जीवन रेखा माना जाता है—वह खुद बदहाल व्यवस्था का शिकार है।
अब यह सामने आ रहा है कि सिर्फ ओपीडी में नहीं, बल्कि जो मरीज पहले से वार्डों में भर्ती हैं, उनकी हालत भी बिजली की किल्लत से बेहद खराब हो चुकी है।

भर्ती मरीजों पर बिजली संकट का प्रभाव
जिन मरीजों को ड्रिप, ऑक्सीजन, नेबुलाइजर या किसी इलेक्ट्रिक मशीन से इलाज दिया जा रहा है, वो बिजली न होने पर गंभीर खतरे में पड़ जाते हैं।
अंधेरे में वार्ड के पंखे बंद हो जाते हैं, जिससे गर्मी और उमस से मरीजों की हालत और खराब हो जाती है।
रात के समय बिजली न होने पर मच्छर, बदबू और असुरक्षा का माहौल बन जाता है, जो संक्रमण को बढ़ावा देता है।
ड्यूटी स्टाफ भी बिना रोशनी के ठीक से काम नहीं कर पाता, जिससे इमरजेंसी में देरी हो जाती है।
गंभीर सवाल — क्या ICU या आपरेशन थियेटर सिर्फ दिखावा है?
जब बिजली ही न हो और जनरेटर बंद रखा जाए, तो ICU या OT का कोई मतलब नहीं रह जाता।
अगर कोई मरीज ऑपरेशन के लिए तैयार है और बिजली चली जाए, तो ऑपरेशन स्थगित या रद्द करना पड़ता है — यह मरीज की जान के साथ खिलवाड़ है।
जनता का सवाल—फिर ट्रॉमा सेंटर क्यों?
स्थानीय निवासी खुलेआम प्रशासन पर सवाल खड़े कर रहे हैं
> “जब ट्रॉमा सेंटर में बिजली नहीं, जनरेटर नहीं, सुविधाएं नहीं… तो इसे ट्रॉमा सेंटर क्यों कहा जाता है?”
“हमारे क्षेत्र के जनप्रतिनिधि सिर्फ चुनाव के वक्त आते हैं। अस्पताल की हालत जानकर भी अनदेखी करते हैं।”
“अगर किसी दिन बड़ा एक्सीडेंट हो जाए, तो क्या मरीज की जान यूं ही जाएगी?”
क्या कहता है ट्रॉमा सेंटर का महत्व
रानीगंज नगर पंचायत में स्थित यह अस्पताल पूरे पूर्वांचल मार्ग पर होने वाले हादसों के लिए पहला सहारा माना जाता है। यह तहसील, थाना और रेलवे स्टेशन से सटा हुआ है, इसलिए यहां आने वाले केसों की संख्या लगातार ज्यादा रहती है।लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी इसे खुद एक गंभीर मरीज़ बना रही है।
1. आपातकालीन जीवन रक्षक सेवाओं की पहली और आखिरी उम्मीद
सड़क दुर्घटनाएं, गोली लगना, जलने या गम्भीर चोट लगने जैसे मामलों में ट्रॉमा सेंटर ही वह जगह होती है जहाँ मरीज को “गोल्डन आवर” यानी जीवन बचाने का सबसे अहम एक घंटा मिल पाता है।
2. कम समय में सही इलाज = जान बचना तय
ट्रॉमा सेंटर में प्रशिक्षित डॉक्टर, आधुनिक उपकरण और इमरजेंसी फैसले लेने की व्यवस्था होती है। अगर ये सुविधाएं समय पर मिल जाएं, तो गंभीर से गंभीर मरीज को भी मौत के मुंह से वापस लाया जा सकता है।
3. सामान्य अस्पताल से अलग, विशेष रूप से गम्भीर मरीजों के लिए
ट्रॉमा सेंटर आम ओपीडी या सामान्य वार्ड नहीं है — यहाँ विशेषज्ञ, सर्जन, ऑर्थोपेडिक, न्यूरो और कार्डियक एक्सपर्ट एक टीम की तरह काम करते हैं।
4. किसी जिले में ट्रॉमा सेंटर का होना = जनता को सुरक्षा का भरोसा
जब किसी क्षेत्र में ट्रॉमा सेंटर मौजूद होता है, तो सड़क दुर्घटना, लड़ाई-झगड़े, आगजनी या अन्य आपदाओं में स्थानीय लोगों को लखनऊ, प्रयागराज जैसे बड़े शहरों की ओर भागने की ज़रूरत नहीं पड़ती।
5. स्वास्थ्य विभाग की गंभीरता का पैमाना
ट्रॉमा सेंटर की स्थिति यह बताती है कि जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग आपातकालीन चिकित्सा को कितनी प्राथमिकता दे रहा है। अगर यहां मशीनें बंद, डॉक्टर अनुपस्थित और बिजली गायब हो – तो ये सिर्फ सिस्टम की नहीं, सरकार की नाकामी है।
जिम्मेदार कौन?
बिजली विभाग की उदासीनता?
स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही?
जनप्रतिनिधियों की चुप्पी?
जब अस्पताल ही बीमार होगा, तो आम जनता इलाज की उम्मीद किससे करे?
बिजली संकट में इलाज बना चुनौती – रानीगंज अस्पताल के मरीजों की ज़ुबानी
श्यामलाल (उम्र 48), बीमार परिजन की तीमारदारी कर रहे “हम अपने आदमी को यहां लेकर आए हैं, लेकिन यहां बिजली नहीं है तो चिंता और बढ़ गई है। कहीं बाहर इलाज करवाने की सोच रहे हैं। सरकारी अस्पताल में इतना भी सिस्टम नहीं रहेगा तो कहां जाएं गरीब लोग?”
राजकुमारी देवी (उम्र 58), ग्राम भूआलपुर
“मैं दिन से भर्ती हूं, पंखा नहीं चल रहा, गर्मी से हालत और बिगड़ गई है। डॉ. अच्छे हैं लेकिन बिना लाइट के इलाज कैसे होगा? दवा से ज्यादा तो बेचैनी बिजली की वजह से हो रही है।”
मीना देवी (परिजन),
“मेरी बहू को भर्ती कराए हैं, लेकिन बिजली न होने से डॉ. भी परेशान रहते हैं। इन्वर्टर कुछ घंटे चला लेकिन बाद में बंद हो गया। गर्मी और अंधेरे में बच्चा भी रोता रहा। ऐसा लगता है कि अस्पताल नहीं, कोई भूतहा हवेली है।”
एक अन्य बुज़ुर्ग मरीज का कहना
“डॉक्टर हैं लेकिन मशीनें नहीं चलतीं। बिजली जाती है तो अंधेरे में ड्रिप चढ़ाई जाती है। ये अस्पताल है या मज़ाक?”
अधीक्षक डॉ. नौशाद अहमद का कहना है
> “विद्युत आपूर्ति मौसम की वजह से बाधित थी, जिसे बाद में सही करा दिया गया। अस्पताल में इनवर्टर की व्यवस्था है, लेकिन वह लगातार चलने के कारणों से बंद हो गया था। जनरेटर है लेकिन तकनीकी खराबी के कारण बंद है बैकअप व्यवस्था के लिए सोलर पैनल लगाने की योजना पहले से प्रस्तावित है, जो जल्द ही जमीन पर उतरने वाली है।”
रानीगंज ट्रॉमा सेंटर में व्याप्त बदहाली न सिर्फ स्वास्थ्य सेवाओं का मज़ाक है, बल्कि यह प्रशासनिक संवेदनहीनता का काला चेहरा भी है। जरूरत है कि इस विषय पर तत्काल संज्ञान लेकर स्थायी समाधान किया जाए, जिससे किसी मासूम की जान लापरवाही की भेंट न चढ़े।
स्टाफ की मेहनत लेकिन सिस्टम का फेल्योर
नर्सिंग स्टाफ दिन-रात वार्डों में डटे रहते हैं।
डॉक्टर इमरजेंसी केस में बिना रुके ड्यूटी कर रहे हैं।
लेकिन दिक्कतें – जैसे जनरेटर का बार-बार फेल होना, लैब रिपोर्ट में देरी, सफाई में लापरवाही – मरीजों को गुस्से में ला रही हैं।
ये रिपोर्ट जनहित में तैयार की गई है ताकि शासन-प्रशासन तक आम जनता की आवाज़ पहुंचे।