आज ही के दिन 27 मार्च 1898 को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैय्यद अहमद की वफ़ात हुई जिन्हें 1842 में हिंदुस्तान के आखरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने उन्‍हें “जवद उद दाउलाह” उपाधि से सम्‍मानित किया था।

1857 क्रांति की असफलता के चलते सर सैयद का घर तबाह हो गया उनके परिवार के कई लोग मारे गए और उनकी मां को जान बचाने के लिए करीब एक सप्‍ताह तक घोड़े के अस्तबल में छुपे रहना पड़ा।

1857 की क्रांति में मुस्लिम समाज का ढांचा टूट गया दिल्ली में हज़ारो उलेमाओं फांसी पर चढ़ा दिया गया। स्कूलों ने अंग्रेजी ज़ुबान पढ़ाई जाने लगी जिसका मुसलमानों ने विरोध अपने बच्चों को स्कूल भेजना बन्द कर दिया और बस यही से मुसलमान स्कूल और शिक्षा से दूर होने लगे। बिना अंग्रेजों की जुबान के बड़े ओहदों पर नोकरी मिलना बंद हो गयी। और मुस्लिम समाज बेरोजगारी और अशिक्षा की ओर बढ़ने लगा।

सर सैयद 100 साल आगे की सोचते थे मुसलमानो की आने वाली स्थिति को भांप गए थे। पूरा खानदान मुग़ल दरबार मे बड़े ओहदों पर था खुद उन्हें भी मुग़ल दरबार मे अच्छा ओहदा मिला था उसके बावजूद मुग़ल दरबार छोड़कर ब्रिटिश हुक़ूमत में नोकरी कर ली।

फतेहपुर, मैनपुरी, मुरादाबाद, बरेली, ग़ाज़ीपुर कई जगह कार्यरत रहे और बनारस के स्माल काजकोर्ट के जज पद से सेवानिवृत हुए। अंग्रेजों ने इनकी सेवा व निष्ठा को देखते हुए इन्हें ”सर” की उपाधि से विभूषित किया था।

नोकरी में रहते हुए मुरादाबाद, बरेली, ग़ाज़ीपुर और अलीगढ़ में उन्होंने कई आधुनिक स्कूल, कॉलेजों और संगठनों की स्थापना की।

आधुनिक शिक्षा और अंग्रेजी ज़ुबान के चलते उन पर अंग्रेजों के वफादार होने का इल्जाम लगा यहां तक कुफ़्र तक के फ़तवे लगे शायद उस वक़्त के मुसलमान उनकी सोच को नही समझ सके जितनी दूर की वो सोचते थे।

#Sir_Sayed_Ahmad_Khan

Facebook Comments