नाज़िश प्रतापगढ़ी

शायरी की दुनिया में प्रतापगढ़ का नाम रोशन करने वाले नाज़िश प्रतापगढ़ी।

शायरी की दुनिया में प्रतापगढ़ का नाम रोशन करने वाली सबसे बड़ी शख़्सियत नाज़िश साहब की है, मुल्क व वतन की ख़िदमत, अम्न व शान्ति का पैग़ाम स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी का परिचय, यह था नाज़िश साहब की ज़िन्दगी का मशगला (काम)।

लम्बी व छोटी गज़लों में आप हमेशा वतन की वफ़ादारी और वतन पर मर मिटने की दावत देते रहे,

आप का असल मैदान सिन्फ ए नज़्म था, जिसमें आप दर्द ए दिल कहते थे, गज़ल पर पूरी क़ुदरत थी, नअत के अशआर कहने में भी माहिर थे, जो बाद में नग़मए सरमदी के नाम से पब्लिश हुआ।

पैदाइश 22 जुलाई 1924 को हुई और वफ़ात 10 अप्रैल 1984 को हुई।

लम्बा क़द, हलकी दाढ़ी, बा-रौनक़ बड़ा चेहरा, बदन पर सदरी ख़ास पहचान थी।

आपकी शायरी का ऐतराफ़ व कद़्र उस ज़माने के तमाम शोरा करते थे, फिराक़ गोरख़पुरी, साहिर लुधियानवी, हमीद सिद्दीक़ी, अली जव्वाद ज़ैदी सब आपके क़द्र-दान थे।

आपके मजमूऐ को देख कर की अन्दाज़ा होता है कि आप ने शायरी के ज़रिए वतन की ख़िदमत को अपना मश्गला बना लिया था।

नज़्मों के मजमूऐ इस तरह हैं

1- ज़िन्दगी से ज़िन्दगी की तरफ

2- क़दम क़दम

3- मताए क़लम

4- जहाँ और भी हैं

5- नया साज़ नया अन्दाज़

6- दर्द तहे जाम

7- हिन्दुस्तान जाग उठा

8-मताए नाज़िश

9- चर्ख़ वतन के महरो माह

10- नोश्ता ज़ख़्म(मजमूआ ग़ज़ल)

11- नग़मए सरमदी (नअतों का मजमूआ)

हज़ारों स़फ़हात पर फ़ैली यह नज़्मै, ग़ज़लै, नअतै आपकी यादगार हैं, इसी तरह आपकी औलादैं भी शेयर व शायरी में आपकी निशानी हैं।

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आपकी शायरी के चन्द नमूनें

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रहबरो, राहगरों, अपने क़दम तेज़ करो

साथियों, हम सुख़नो और क़लम तेज़ करो

आज क़ज़्ज़ाक़ में आदिल में कोई फ़र्क़ नहीं

आज तूफ़ान में साहिल में कोई फ़र्क़ नहीं

सड़ती गलती हुई लाशों पे महल बनते हैं

शाद वह हैं कि जिन्हें हिर्स ए जहाँदारी है

हर अम्न ज़ादों के होंटों पे है मकरूह हंसी

और इन्सान के सीने में लू जारी है

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हम अहिंसा के परस्तार कहे जाते हैं

अम्न आलम के निगहदार कहे जाते हैं

ज़ीस्त के क़ाफ़ला सालार कहे जाते हैं

मान ए अज़मत ए किरदार कहे जाते हैं।

(लेखक: आदम अली नदवी=मदरसा सय्यद अबुल हसन अली हसनी नदवी आमीन बहरू पुर के अध्यापक हैं)

https://youtu.be/N6u3lPU8VjY

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