सोचिए आप किसी गांव में है और आप एक औरत की प्रसव पीड़ा होते देख रहे है। जिस गांव में आप रह रहे वहां से 100 किमी दूर आपका अस्पताल है लेकिन वहां पहुंचने के लिए न ही आपके पास कोई साधन है और न ही आपके पास खुद की कोई सुविधा। हालांकि 4 औरतें मिलकर भले ही उस औरत की मदद कर देंगे लेकिन अगर इससे भी गंभीर हालात रही तब आप क्या करेंगे? कल्पना करके भी रूह सी कांप जाती है। वैसे तो भारत के ऐसे कई गांव है जहां अब भी कई लोग समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने की वजह से घर में ही दम तोड़ देते है, अब भी ऐसी कई गांव की औरतें है जो घर में ही प्रसव पीड़ा झेलते हुए अपने बच्चें को जन्म देती है। इन्हीं सबको देखते हुए छत्तीसगढ़ के एक गांव नारायणपुर में बाइक एंबुलेंस सेवा बहुत बड़ी सौगात साबित हुई है। इसकी वजह से कई लोगों की जान बचाई जा चुकी है। देश के अधिकांश आदिवासियों का गढ़ रह चुका छत्तीसगढ़ में यह सेवा किसी वरदान से कम नहीं है।

वरदान से कम नहीं यह सेवा

नक्सिलियों से प्रभावित छत्तीसगढ़ के गांव नारायणपुर में हालात काफी गंभीर बने हुए है। पहाड़ी और जंगली जैसे इलाकों में एंबुलेंस तो दूर स्वास्थ्य सेंवाएं पहुंचना भी काफी मुशिकल है, लोग जड़ी-बूटी के भरोसे रहते थे जिसका असर सबसे ज्यादा गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं पर पड़ता था। लेकिन अब बाइक एबुलेंस की इस सुविधा से कई लोगों की जान बचाई जा रही है। इस सुविधा से गांव की स्थिति में तेजी से सुधार आया है। बता दें कि भारत की इस कोशिश की यूनीसेफ ने भी काफी सराहना की है।

कैसे होता है बाइक एंबुलेंस का इसतेमाल?

कई लोगों को यह डर रहता था कि यह सुविधा सच में मरीजों को सही सलामत ले जा पाएगी भी या नहीं। लेकिन यह सुविधा काफी काम लायक साबित हुई है। बता दें कि आप आसानी से अपने घर के पास से इस सुविधा का आनंद उठा सकता हैं। इस बाइक एंबुलेंस में मरीज के अलावा एक परिजन, कार्यकर्ता और ड्राइवर साथ होता है। यह मरीज को गांव के नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाती है। साथ ही गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों के लिए जांच और टीका लगाने की भी पूरी सुविधा यह बाइक एंबुलेंस उपलब्ध कराता है। इस कामगार एंबुलेंस में मरीज के साथ केयर टेकर भी होता है जो मरीज की देखरेख करता रहता है।

रायपुर से इस्तेखार अहमद की रिपोर्ट

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